Saturday 29 October 2016

दीपावली शुभकामना......

                      जीवन अनगिनत श्याह प्रतिबिम्बों से आंख मिचैली के साथ अनवरत गतिमान है। मन का क्रम भ्रम के भवर में घिर अधीर हो ठहर जाता किन्तु समय सतत गतिमान है।इसी धीर अधीर मन  को नए उत्साह से लबरेज कर पुनः उत्साहः के नव प्रकाश भविष्य के राह आलोकित हो जिससे हर्ष दीप प्रज्वलित रहे त्योहारो की श्रृंखला को  सम्भवतः जीवन दर्शन में समाहित किया है। दीपोत्सव में दैदीप्यमान अनगिनत प्रकाश बिम्बों की श्रंखला भविष्य के गर्त में छिपे तम को परास्त कर  ऐसे उदित संसार का शृजन कर सके जहाँ हर किसी को उसके भाग खुशियो की लड़िया फुलझड़ी की भांति खिलखिला सके। फटाकों की प्रतिध्वनित आवाज कानो को ही न गुंजित कर दिल के तार को भी झंकृत कर सके जिससे जीवन संगीत में सतत नए धुन का प्रवाह हर पल खुशियो के लय ताल से तरंगित हो सके। आपके कुछ दीप उन नामो को भी समर्पित हो जिनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष भाव कही न कही हमारे खुशियों के कारणों के कारक हो। भावो के प्रकाश हर किसी को उसके हिस्से का अलोक दे ऐसे दीप के अलख ज्योति से चहुँ दिशा दैदिप्तमान हो। आप सभी को दीपावली के पर्व की हार्दिक शुभकामना।  
        

Tuesday 25 October 2016

ग्रेट महाभारत शो

                         
                    मनसुख के हाथ में अखबार का आधा भाग पड़ा था। मनसुख कुछ गौर से उसमे पढ़ने की कोशिस  कर रह था।  तब तक बगल में बैल के नाद में चारा मिलाते -मिलाते काका ने मनसुख से कहा - का रे जब पढ़े के रहे तो खेत में भगता था अब का ओ हे में पढ़ने की कोशिस कर रहा है। मनसुख को पता है कोई काम न भी हो तो काका बिना टोके रुकने वाले कहाँ है। मनसुख बोला न काका पढ़िए लेते तो का हो जाता। ई सब तो पढ़ले लिखल है जकरा हम रोज केहू न केहू बहाने कोसते रहते है। सबके नजर में तो सारे दिक्कत के जड़ तो यही पढ़ल लिखल बाबू सब है। का बात है मनसुख आज तो बड़ा बुद्धिमानी वाला गप्प हांक रहा है है -काका बोले। 
मनसुख -का काका हमारे बुद्धि पर कोनो शक है का। 
काका -नै रे फिर भी ई तो बता का लिखल है ई फाटल अखबार में। 
मनसुख -न काका हमको ई नहीं समझ आ रहा की परिवार में सब देश के लिए लड़ रहा, देखो देश सेवा के लिए सब कितना मेहनत कर रहे है। और ई अखबार वाले इनको कोस रहे है।  बेटा तो सब बात मानने के लिए तैयार है लेकिन बाबूजी है की मानते नहीं। ई तो काका महाभारत से भी ज्यादा गांठ वाला परिवार लग रहा है। थोड़ा कलियुग है इसलिए लगता है कहानी कुछ उलट सा गया है। यहाँ पता नहीं धृतराष्ट को किससे मोह है देश से की बेटा से की भाई से । काका अब तक तो ध्यान से सुनकर समझने की कोशिस कर रहे थे किन्तु कुछ पल्ले नहीं पड़ने से झुलाकर बोले -अरे का बात लिखा है साफ़ साफ़ बता। हम कोनो कहानी नहीं पूछ रहे। 
मनसुख -हाँ काका ओहि तो बता रहे है। अब तो समाचार भी कहानी जैसे ही हो गया है। अब काका बात ई है की हमको भी ठीक से कुछ समझ में नहीं आ रहा है। पहले तो ई महाभारत जैसा लग रहा था किन्तु भाई-भाई का प्यार देख लगने लगा की रामायण है। अब काका ई दोनु का मिक्स कहानी है। काका मनसुख को समझने की कोशिस में लग रहे है। 
मनसुख आगे बोला -अब काका बात अइसन है की बात तो बस राजगद्दी के ही है जैसे की रामायण और महाभारत में था। किन्तु यहाँ अब पुत्र प्रेम किसी कारण से शायद कलयुग का प्रभाव है मित्र प्रेम में ज्यादा बदल गया है। इस कहानी में तो सब भगवान ही छाये है। कही रामजी है तो कही शिवजी,गोपाल भी है कृष्ण वाला रूप में अर्जुन को समझा भी रहे और साथ भी है। बेटा का संस्कार है की अभी तक अपने पिता से काफी नरमी और मुलायम से पेस आ रहा है। लेकिन अपने पिताजी के अमर प्रेम से थोड़ा शर्मिदगी महसूस कर रहा है। दुनिया के लांछन से डरकर पिताजी को समझने की कोशिस में है लेकिन बाबूजी है की मान नहीं रहे। अब काका का सब्र जवाब दें रहा था कुछ -कुछ त्योरी चढ़ा कर बोले -अरे तू यही बकवास कर रहा है हम अखबार का समाचार पूछ रहे और तू है की किसी के घर के बंदरवाट का कहानी सुना रहा है। यहाँ तो रोजे किसी के घर में ई सब झगड़ा चलते रहता है। तू कोनो नहीं जानता है क्या। 
मनसुख -काका तू बेकार में खौजियाते रहते हो अब यही समाचार लिखा है तो का बताये। अब तोहे पढ़ना आता है तो पढ़ लो।काका तो ठहरे कला अक्षर भैस बराबर ,बोले अच्छा आगे बता। 
मनसुख -तो काका ओहि तो बता रहे। अखबार कहता है की झगड़ा का कारण का है ई तो पता नहीं। लेकिन सब सुलह में लगे है ,लेकिन दिक्कत है की यहाँ कृष्ण तो साथ है लेकिन अभी तक अर्जुन को गीता ज्ञान नहीं दिए। अभी तो बस सुलह का दौर चल रहा है। अब देखे इस नौटंकी में कब अर्जुन  सामने हाथ में गांडीव धारण कब युद्ध के  ललकार दे। ई काका ग्रेट महाभारत शो चल रहा है, वैसे भी भगवान् तो कह ही गए है कि ई यदु वंश तो आपसे में लड़ कट मिटेगा। अब देख तो सब रहा है लेकिन समझाता काहे नहीं ई नहीं समझ में आता है। जनता भी आनंदित होकर इस नौटंकी को देख मजे लेने में लगी है। ई भी जरुरी है न जब परिवार नहीं तो गांव कैसा और गांव न तो शहर कैसा और शहर न तो प्रदेश  कैसा। इसलये सब मिलकर पहले परिवार बचाने में लगे है ताकि प्रदेश बचे। कुछ दिन राज काज रुकिए जाएगा तो कोनो सुनामी थोड़े ही आ जायेगा। सो सबकुछ छोड़छाड़ कर अब इसको सब सुलझाने में लगे है। वैसे भी यहाँ तो सब भगवान् भरोसे ही चलता है। 
  किन्तु काका के दिमाग में अब भी कुछ नहीं पल्ले परा और वो बैल को चारा देकर अपने दूसरे काम के लिए चल दिए। जबकि मनसुख उस अख़बार में कोई और कहानी तलाश रहा था।  

Monday 10 October 2016

विजयादशमी ......

      सुबह से हर्षोल्लास  गांव में छाया हुआ है। समय करवटे बदल रहा है। सब कुछ पूर्ववत है, किन्तु जीवन की रफ़्तार बढ़ाने को आतुर सब ।सब खुश नजर आ रहे है। मनसुख भी खुश है। आज विजयादशमी है। महिषाषुर मर्दन के बाद आज फिर से एक बार रावण जलने को तैयार है। बचपन से ही मनसुख गांव में इस उत्सव को  देखता आ रहा है। पहले मेला का अपना ही आनंद होता था और रावण के जलने से ज्यादा मजा मेला में आता था। किन्तु समय के साथ साथ बहुत कुछ बदल गया लेकिन रावण बार -बार जलने के बाद भी आज फिर से एक बार विजयी मुद्रा में सामने के मैदान में खरा है। धर्म में मनसुख को पूरा आस्था है। किन्तु फिर भी बार -बार रावण का जलन उसे बैचैन करता है। 
  वह मैदान की ओर बढ़ा चला जा रहा है। भीड़ में बच्चे बूढ़े सभी अपने लिए एक उपयुक्त जगह को तलाश रहा है की रावण को लगते बाण और उठते चिंगारी का पूरा आनंद ले सके। काका पहले ही उस भीड़ में खो चुके है। मनसुख की नजर जगह के साथ -साथ काका को भी ढूंढ रहा है। उस भीड़ में रावण के पुतले को देखते हुए उसकी कई छाया कृति भीड़ में मनसुख के नजरो में तैरने लगा। मनसुख सोच रहा था यह आयोजन क्या बदहाली से झुंझते लोगो का मतिभ्रम कर देता या लोग वास्तविकता को भुलाने का बहाना ढूंढता है। तब तक भीड़ में मनसुख को काका नजर आ गए। मनसुख जोर से चिल्लाया -काका ओ काका ,काका पलट के मनसुख को देखा और इसारे से कहा आते है। 
काका बड़ी मुश्किल से भीड़ में जगह बना कर मनसुख के पास पहुचे। 
काका- कहाँ था अब तक कब से हम तुको खोज रहे है। 
मनसुख-बस काका अबिहे आये है। अच्छा चल आगे चले। दोनों और थोड़ा आगे सरकने लगे। तबतक दूसरी ओर से राम सबके साथ पुरे तैयार हो मैदान के अंदर आने लगे। लोगो के दंडवत के उत्साह को देखकर मनसुख काका से पूछा -ई का कर रहा है। 
काका- पूजा ,और का मांग रहा है की हे भगवान् कुछ तो दे। लेकिन काका ई तो मंडली वाला राम है। कोनो असली थोड़े।  अरे बुड़बक ई तो सब जनता है और वो भी। लेकिन लोग अब मन से कमजोर हो गया न कुछ पूछने का ताकत है न करने का। तो जहाँ भी मौका मिलता है बस हाथ जोड़के माँगने बैठ जाते। उहो देख हाथ उठाके कैसे आशीर्वाद दे रहा है जैसे बस उसका सारा मनोरथ अब पुरे हो जाएगा। देखता नहीं इलेक्शन टाइम में कैसे हम भगवान् हो जाते और ई नेतवन सब हाथ जोरे और हम भी बिना कुछ पूछे इनको भोट का आशीर्वाद दे देते। तभी तो ई हालात है। 
पर काका हर साल ई ड्रामा रावण जलाने का जो होता है लगता है फिर भी रावण और बढिए रहा है। मनसुख कहा - देख रावण तो फिर भी ज्ञानी लेकिन अहंकारी था कहते है। लेकिन अभी के जो रावण है अज्ञानी ,महामूर्ख है। अब बेटा धर्म और अधर्म अपने अपने खांचे में रखकर देखने लगे है। जो हमारे मतलब को सिद्धकरे अब वही धरम है। ई बेचारा रावण तो हर साल ऐसे ही जलता है। देख एक ठो कुबेर पैसा ले के भाग गया। पकड़ो-पकड़ो सब चिल्लाए लेकिन पकड़ेगा कोई नहीं। ऐसा कितना तो रोजे हो रहा है। अचानक देख कैसे मनोबल बढ़ा की अब हर कोई राम कम और रावण की जरुरत ज्यादा महसूस कर रहा है। अब हर गली कूँचे में राम के नाम पर रावण लड़ रहे है।  
तब तक एक तीर चला और सीधे बिच में खड़े रावण को भेद दिया। फटाको की आवाज में चिंगारिया धूं -धूं कर उठने लगा.मनसुख और काका की नजर उसी ओर टिक गया। लोगो की टोली जोर-जोर से ताली बजाकर खुश हो रहे थे। 
जलते रावण और खुश होते लोग को देख मनसुख दिग्भ्रमित था और रावण से निकलते लपटो को देख कर सोच रहा था की इसकी ताप आज लोगो के अंदर बसे रावण को भी जलाने की क्षमता रखता है या और भड़काएगी पता नहीं क्या। किन्तु पता नहीं क्यों आज रावण का जलना मनसुख को अच्छा नहीं लग रहा था। 
(विजयादशमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामना )

आदिपुरुष...!!

 मैं इसके इंतजार में था की फ़िल्म रिलीन हो और देखे। सप्ताहांत में मौका भी था। सामान्यतः फ़िल्म की समीक्षा फ़िल्म देखने से पहले न देखता हूँ और न...