Thursday 11 May 2017

सत्याग्रह ......

काका....
हाँ मनसुख बोल ......।
नहीं काका हम सोच रहे थे कि सब आजकल का हो रहा है अपने देश में। मनसुख सोचनीय मुद्रा में दिख रहा था।
काका- का रे ऐसा का नया हो गया जो पहले नहीं हो रहा था। हमको तो सब वइसने दिख रहा है। काका ने गाय को नाद के साथ लगे खूंटे से बांधते हुए पूछा।
मनसुख- नहीं काका सो तो ठीक है, लेकिन कुछो कुछो औरो हो रहा है जो तुमको या अभी नहीं पता है।
काका- तुम पहले ई सब गोबर को एक जगह जमाव , अपना काम पहले ठीक से कर.....काका इस तरह मनसुख को निठ्ठला बैठा देख झिड़कते हुए कहा।
   फिर थोड़ा रूककर पूछा..... तो बताओ न का हो रहा है।
मनसुख ने पहले तो अनसुना कर दिया शायद डांट का प्रभाव था। काका ने फिर लगभग पुचकारते हुए कहा... हाँ का बता रहा था रे .. ।
मनसुख ने थोड़ा नजर सीधा कर कहा- तुको पता है आजकल दिल्ली में सत्याग्रह चल रहा है
काका- का गंधजी फिर से जिंदा हो गए ...? काका के सफ़ेद मूंछ कुछ खिलने लगे।
मनसुख- अरे का सत्याग्रह खाली गंधजी ही कर सकते है...। मनसुख थोड़ी तेज आवाज में चिढ़ते हुए कहकर गोबर समेटने में लग गया।
काका- न हमतो ऐसे ही बोल दिए ,अच्छा छोडो बताओ कौन कर रहा है
मनसुख-  काका द्वापर में पांडव ने पांच गांव के लिए याचना किया था और कलयुग में पांच सवाल के जबाब के लिए सत्याग्रह किया जा रहा है। ये कहानी रामायण महाभारत मनसुख बचपन से ही काका के मुख से सुनता आया है।
काका- ई पांडव कौन है? आजकल होने लगे है कि...?
मनसुख -  आजकल देश बदल रहा है तुको नहीं पता? मनसुख ने प्रश्वाचक दृष्टि काका के ऊपर डाला काका अपने काम में व्यस्त। मनसुख बोलना जारी रखा - काका हम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ओऱ जा रहे है। आजकल अपने यहाँ राम-रावण, कौरव-पांडव ,राष्ट्रद्रोहो-राष्ट्रभक्त में ही सब बट कर एक दूसरे को देख और तौल रहे है।
काका अभी तो एके पांडव दिख रहे है, बाकी लगता है अज्ञातवास पर है। मनसुख को लगा की उसका ध्यान अपने काम पर से भटक गया है सो चुप हो गया और गोबर के उपले बनाने में लग गया।
काका- तो ई धृतराष्ट्र कौन है जिनसे ई जवाव मांग रहे हैं।
मनसुख- जो हस्तिनापुर के सिंघासन पर बैठे है ।वही है। जो अपने आपको सत्यवादी हरिश्चंद्र कहते है।
काका- लेकिन ऐसा का कर दिया जो अब महाभारत होये के सम्भावना हो गया। काका ने सारे गाय को सब तक बाहर ला के बाँध दिया ।
मनसुख-महाभारत तो नहीं पता लेकिन सत्याग्रह तो जरूर हो रहा है।
काका- अब कोनो अंग्रेज है जो सत्याग्रह कर रहे है....किससे आजादी चाहिए इनको...?
मनसुख- काका सब ऐसे गडमड है कि हमुहो को नहीं समझ में आ रहा...।मनसुख के चेहरे पर विश्लेषक वाले भाव उभर गए। अब आजादी नहीं काका जवाव चाहिए जवाव । मनसुख कुछ तैस में लगा।
काका- देख बेटा ई बेकार के ड्रामा में इतना ध्यान न दे । ई सब एके हाउ। आज यहां फायदा तो इनके साथ न फ़ायदा तो बस एक नया कहानी ले के शुरू। जब शुरू से गुरु चेला बने घूम रहे थे तब नैतिकता नहीं कचोटे। आज गांधी के फोटो ले के बैठ गए है। हम तो पहले ही कहते थे कि ई सब इकठ्ठा हो के बस एक और सब्जबाग दिखा रहे है। तो तू को बड़ा जोश आता था न काका कुछ तो बदलेगा। देख का बदल गया। अरे बेटा चरित्र के जड़ में जब घुन लग गया तो पेड़ कुछ समय हरा भरा दिखेगा फिर तो सुखना ही है। सब समाज में हो रहे मूल्य को तो देखेंगे नहीं बस भेष बदल कर भाषणबाजी करेंगे। अरे ई सब भी इसी समाज से सिख के आये है। जो सीखे है वो कर रहे है। बाकी जनता तो नारे लगाने के लिए है ही....। आज इसके पक्ष में कल उसके पक्ष में ...।बदलना कुछ नहीं। देख नहीं रहे हमारी हालात जस के तस है। अरे कुछ बदलता तो हमहू नहीं बदलते और...... कहते कहते काका रुक गए।
मनसुख एक टक काका को सुन रहा था। अब तक उसने सोचा था कि काका को इन सब पर कोई झुकाव नहीं रहता। मन ही मन अब सोच रहा था काका की सब चीज पर पैनी नजर है...।


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