सब कुछ यथावत रहते हुए भी , खुश होने के कारण तलाश करते रहे। बेशक आप इस बात से वाकिफ है कि कैलेंडर पर सिर्फ वर्ष नए अंकित होंगे , लेकिन वो स्याही और पेपर यथावत जो चलते आ रहे है वही रहेंगे। फिर भी एकरसता के मंझधार में फसने से बेहतर है कि इन लम्हो को ज्वार की भांति दिलो में उठने दे और कुछ नहीं तो वर्ष की पहली किरण में मंद बयार के साथ पसरी हुई ज़मीन पर ओंस के बूंदों पर झिलमिलाती किरणे प्रिज्म सदृश्य कई रंग बिखेर रहा हो उसको देख आनंदित होने की कोशिश करे। कही दूर मध्यम और ऊँची तान में कोई चिड़िया चहक रही हो तो दो मिनट रूक कर उसे मन के राग के साथ आंदोलित होने दे। उससे छिटकने वाली राग को बाढ्य नहीं अंतर्मन के संसार में गूँजने दे।
सिमटती दुनिया के एकरुपिय निखार में बहुत कुछ समतल हो गया है जहाँ ख़ुशी और अवसाद के बीच में स्पष्ट फर्क करने में भी अब कठनाई है।
हर वक्त याथर्थ के धरातल को ही टटोलना जरुरी नहीं है, कुछ पल ऐसे ही दिनों के बहाने कल्पना के सृजनलोक में विचरण कीजिये।
नव वर्ष मंगलमय हो.......
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